Tuesday 4 April 2017

National poetry month

Day 4 - five things you want to say to the rain


बॉम्बे की बारिशों के लिए

एक, तुम आते हो यूँ गरजते हुए, बरसते हुए, मेरी ज़िन्दगी के कुछ महीनों को अपना बैकग्राउंड म्यूज़िक देने - कभी कभी 'तुम से ही' स्टाइल में नाच लेती हूँ मैं भी...
दो, तुम दिखाते हो लोगों की resilience जो डूबते घरो में भी, घुटनों तक भरी सड़कों में भी किसी न किसी मजबूरी या चाहत से काम पर जाना बंद नहीं करते; दिल्ली में तो बारिश का मतलब छुट्टी...
तीन, तुम गुदगुदाते हो वहाँ जहाँ कोई नही छूआ - नाक की गहराई, गले के भीतर  से चीखें आती है छिकों के भेस में और मैं फिर ग्रीन टी पकड़े तुम्हे चाह कर भी अपना नहीं पाती...
चार, तुम्हे भूलना चाहूँ तो भी बदन से लिपट जाते हो, मैं भीगी सी फिरती हूँ, कपडों में हर वक़्त तुम्हारी महक और वो कीचड़ के निशाँ जैसे कोई लिप्स्टिक लगाये चूम गया हो...
पाँच, तुम्हारी फिर भी बहुत याद आती है आज भी, हमेशा आएगी तुम्हारी याद।

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